बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
उत्तर -
आधुनिक काल में तो काव्य के अन्तर्गत प्रकृति का प्राचुर्य और भी अधिक बढ़ गया है। आधुनिक कविता का विशेष युग छायावादी युग प्रकृति की आधारभूमि पर ही खड़ा हुआ था। प्रसाद व पंत दोनों ही छायावादी कवि हैं। दोनों के काव्य में प्रकृति को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है।
प्रसाद व पंत का प्रकृति प्रेम प्रसाद और पंत दोनों ही कवि प्रेम और सौन्दर्य के उपासक होते हुए भी प्रकृति के प्रति महान आस्था और प्रेम रखते हैं। काव्य सरोवर की लहरियों में अन्तर चाहे देखा जाए, परन्तु भावों की गहराई एक है। एक लता की विभिन्न पुष्पमालाओं की भाँति रूप, गुण और गन्ध की समता भी है और विभिन्नता भी है। एक ने शैवागमों के आनन्दमूलक दृष्टिकोण से रहस्यात्मक होकर प्रकृति को देखा तो दूसरा बाल-सुलभ विस्मय से उसकी तलस्पर्शी गहराई को आँकने की ही आजीवन साधना करता रहा है। एक की अनुभूति प्रकृति के गूढ तत्वों को किसी अज्ञात सत्ता के नियमन मंा देखती हैं, दूसरा सहचरियों आदि मानवी सम्बन्धों के रूप में व मुक्त सत्ता के रूप में उसी प्रकृति का वैभव चित्रकार की - सी सूक्ष्मता से शब्दों के रंग उतारता है।
प्रकृति-चित्रण के विविध रूपों की दृष्टि से समानता
प्रसाद और पंत दोनों कवियों में समान रूप से अपने काव्य में प्रकृति को विविध रूपों में चित्रित किया है। दोनों कवियों ने आलम्बन रूप में, उद्दीपन रूप में, उपदेशिका रूप में, मानवीकरण के रूप में, रहस्यात्मकता के रूप में, पृष्ठभूमि के रूप में, प्रतीकात्मकता के रूप में प्रकृति का चित्रण किया है। छायावादी कवियों की वृहत्त्रयी में गण्य प्रसाद और पंत के प्रकृति वर्णन में निम्नलिखित समानताएँ पाई गई हैं-
(1) आलम्बन रूप में प्रकृति चित्रण - आलम्बन रूप में प्रकृति चित्रण छायावादी विशेषता रही है। प्रसाद और पंत दोनों ने ही प्रकृति का वर्णन आलम्बन रूप में किया है। प्रसाद जी की "कामायनी” से उद्धृत ये पंक्तियाँ प्रकृति के आलम्बन रूप को प्रस्तुत करती हैं -
"स्वर्ण शालियों की कलमें थीं,
दूर-दूर तक फैल रहीं।" .
पंतजी ने भी अपनी "ग्रामश्री" कविता में प्रकृति को आलम्बन रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया है -
"फैली खेतों में दूर तलक, मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिसमें रवि की किरणें, चाँदी की-सी जाली वाली।'
(2) उद्दीपन रूप में प्रकृति चित्रण - प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण हिन्दी कविता में आदिकाल से ही प्राप्त होता है। रीतिकालीन कविता में प्रकृति के उद्दीपन रूप में वर्णन की अति हो गई थी। प्रसाद जी ने अपने खण्डकाव्य "आँसू" में प्रकृति का उद्दीपन रूप में इस प्रकार वर्णन किया है -
" मधुमय बसन्त जीवन वन के उस अन्तरिक्ष की लहरों में।
कब आये थे तुम चुपके से, रजनी के पिछले पहरों में। "
पंत जी के प्रकृति के उद्दीपन रूप में 'स्वर्ण धूलि की ये पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं-
"जादू बिछा दिया जन भू पर,
तुमने सोने की किरणों से।
जीवन हरियाली बो-बोकर,
फूलों से उड़ फूल रंगों से।
निखर सूक्ष्म रंग उर के भीतर।"
(3) पृष्ठभूमि के रूप में प्रकृति चित्रण - प्रकृति सदा से मानव जीवन की पृष्ठभूमि रही है। मानव सदा प्रकृति की गोद में रहा है। प्रसाद रचित 'कामायनी' में प्रकृति का पृष्ठभूमि के रूप में चित्रण -
"हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह।
एक पुरुष गीले नयनों से, देख रहा था प्रकृति प्रवाह।
पंत जी के 'नौका-विहार में प्रकृति का पृष्ठभूमि के रूप में चित्रण इस प्रकार है
"ज्यों-ज्यों लगती है नाव पार,
उर में आलोकित शत-विचार।
हे जगजीवन के कर्णधार।
इस धारा-सा ही जग का क्रम
शाश्वत जीवन शाश्वत संगम।'
(4) अलंकार रूप में प्रकृति-चित्रण - कवियों ने सौन्दर्य वर्णन के लिए प्रायः प्रकृति से ही उपमान लिए हैं। प्रसाद जी ने कामायनी में श्रृद्धा के सौन्दर्य-वर्णन में प्रकृति का अलंकार रूप में वर्णन किया -
"नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।
खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघ बन बीच गुलाबी रंग।"
पंत जी ने भी प्रकृति का अलंकार रूप में पर्याप्त वर्णन किया है, उदाहरण -
"बाल रजनी सी अलक थी डोलती,
भ्रमित हो शशि से वदन के बीच में।
अलक रेखाक़ित कभी थी कर रही,
प्रमुखता मुख की सुछवि के काव्य में "
(5) मानवीकरण के रूप में - छायावादी कवियों ने प्रकृति को चेतन रूप में देखा है। प्रकृति पर मानवीय भावों का आरोप करके ही चेतन रूप में प्रस्तुत किया जा सकता था। प्रसाद जी ने प्रकृति का मानवीय रूप में चित्रण निम्नलिखित पंक्तियों में किया है.
"पगली ! हाँ, सम्हाल ले कैसे छूट पड़ा तेरा अंचल।
देख बिखरती है मणिराजी, अरी! उठा बेसुध चंचल।"
पंत जी ने भी प्रकृति पर सचेतना का आरोप करके उसे मानवीय रूप में चित्रित किया है। 'परिवर्तन' कविता में पंत जी ने परिवर्तन पर निष्ठुर और अत्याचारी राजा का आरोप करके निम्नलिखित पंक्तियों में प्रकृति का मानवीय रूप में चित्रण किया है-
"तुम नृशंस नृप से जगती पर चढ़ अनियन्त्रित,
करके ही संसृति को उत्पीड़ित पदमर्दिता।'
"भग्न नगर, कर भग्न भवन, प्रतिमाएँ खंडित,
हर लेते हो विभव कलाकौशल चिर संचित।"
(6) रहस्यात्मक रूप में प्रकृति चित्रण - विचारकों ने रहस्यवाद को छायावाद की अगली सीढ़ी माना है। प्रसाद जी को रहस्यवाद का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने प्रकृति के माध्यम से अनेक रहस्वादी शक्तियों पर संकेत किया है -
"हे विराट ! हे विश्वदेव ! तुम कुछ हो, ऐसा होता भान।
मंद गंभीर धीर स्वर संयुत, यही कर रहा सागर गान।"
पंत जी ने भी यह अनुभव किया कि प्रकृति के माध्यम से कोई असीम सत्ता संकेत कर रही है-
"विश्व के पलकों पर सुकुमार, विचरते हैं जब स्वप्न अजान।
न जाने नक्षत्रों से कौन? निमन्त्रण देता मुझको मौन।'
इस विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पन्त और प्रसाद दोनों के प्रकृति-वर्णन में पर्याप्त समानता है।
दोनों के प्रकृति-चित्रण में असमानता
प्रसाद तथा पंत में अपनी-अपनी काव्य कुशलता और विशिष्टताओं के कारण पर्याप्त मात्रा में वैषम्म के भी दर्शन होते हैं।
(1) पंत के लिए प्रकृति साध्य और प्रसाद के लिए साधन - प्रसाद ने प्रकृति, सौन्दर्य और उसके उल्लास का वर्णन किया है साथ ही उसके आन्तरिक रूप की ओर भी संकेत किया है। प्रकृति उनके लिए आवरण है, अपने में साध्य नहीं है। पंत जी की दृष्टि से सौन्दर्य प्रकृतिगत है और उसी का गुण है। प्रसाद जी प्रकृति को आनन्द का कारण मानते हैं। पंत जी कोई कारण नहीं बताते हैं। प्रकृति का श्रृंगार अयपना श्रृंगार है। दूर फैली हरियाली में वह प्रकृति अपनी ही बाली वय में क्रीड़ा करती है। इस प्रकार प्रसाद ने प्रकृति को अपने भावों को व्यक्त करने के लिए साधन रूप में अपनाया हैं और पंतजी ने प्रकृति के उन्मुक्त गायक होने के नाते साध्य रूप में उसका अंकन अपने काव्य में किया है।
(2) पन्त के प्रकृति चित्रण में कोमलता तथा प्रसाद के प्रकृति चित्रण में व्यापकता - दोनों कवियों के प्रकृति चित्रण में एक विषमता यह है कि पंत ने प्रकृति के कोमल रूप को अधिक चित्रित किया हैं और प्रसाद ने उसके व्यापक रूप को अधिक अपनाया है। वैसे दोनों कवियों में प्रकृति के प्रति कोमलता का भाव है, पन्त कल्पना के सुकुमार कवि हैं। उनके काव्य में प्रकृति का जैसा मधुर और कोमल रूप दृष्टिगोचर होता है, वैसा प्रसाद के काव्य में नहीं हो पाता। प्रसाद प्रकृति के अनन्त, विराट, व्यापक, विशाल, गहन स्वरूप के उपासक हैं।
(3) पंत का प्रकृति के प्रति परिवर्तनशील दृष्टिकोण तथा प्रसाद का स्थायी दृष्टिकोण - दोनों के दृष्टिकोण में एक असमानता यह हैं कि पंत का दृष्टिकोण विभिन्न प्रभावों से बदलता रहा है। जबकि प्रसाद में प्रकृति के प्रति शुरू से अंत तक एक दृष्टिकोण रहा है।
निष्कर्ष रूप में प्रसाद की अपेक्षा पंत के काव्य में प्रकृति अपने स्वछन्द रूप में सम्पूर्ण वैभव के साथ अवतरित हुई है क्योंकि पंत प्रकृति की गोद में पले-बढ़े हैं उनका मन उसी में रमा है तथा प्रसाद के व्यक्तित्व का विकास उपनिषद, बौद्ध दर्शन और आर्य संस्कृति में हुआ है। दोनों ही आधुनिक युग से सम्बन्धित हैं। अतः दोनों में समानता का होना स्वाभाविक है।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।